अपने लेख को प्रभावी लेख कैसे बनाएं Attractive and Effective writing skill
प्रभावी लेखन क्या है?
किसे हम प्रभावी लेखन मानते हैं और किसे नहीं?
क्या प्रभावी लेखन की कोई परिभाषा निर्धारित हो सकती है?
प्रभावी लेखन से क्या सीखा जा सकता है ?
ऐसे अनेक प्रसन्न हैं
जो प्रभावी लेखन को समझने के लिए उठाए जाते हैं।
सबसे मूलभूत बात यह है कि प्रभावी लेखन से हमारा मतलब है ऐसा लेखन जिसको पढ़ कर पाठक प्रभावित हो उठे। उसके मन में भावनाओं का संचार हो वह भावुक हो उठे सोचने लगे, विचार करने लगे, हंसने लगे, रोने लगे यहां तक कि उस लेख को पढ़कर वह पहले जैसा इंसान ना रह जाए, हृदय परिवर्तन स्थिति उत्पन्न हो जाए,
पाठक को उसमें कुछ रोचक, कुछ नया, कुछ अद्भुत लगने लगे इस किस्म के लेखन प्रभावी लेखन की श्रेणी में रखें जाते हैं इन सारी बातों का एक मतलब यह निकल कर सामने आता है की प्रभावी लेखन की मुख्य विशेषता पाठक को सोचने समझने विचार करने और उसकी संवेदनाएं में तेजी लाने का काम करती है
प्रभावी लेखन को परखने की एक कसौटी यह भी है कि प्रभावी लेखन बहुत समय बीतने के बाद भी उतना ही प्रभावकारी बना रहता है जितना वह लिखकर पूर्ण होने के दौरान था
यदि आप वर्तमान समय से लेकर अब तक देखें तो आपको रचनाकारों को पढ़ते वक्त यह प्रभावी कला देखने को मिलेगी अपने प्रभावी क्षमता लेखन के कारण ही उनकी एक पहचान बनी और साहित्य जगत का विस्तार होता गया प्रभावी लेखन के तरीकों के साथ इनके विषय वस्तु ,भाषा ,शैली ,विचार ,मार्गदर्शन, दृष्टिकोण आदि में समय के साथ परिवर्तन आता गया समय के साथ मानव और मानव समाज और प्रकृति में बदलाव आना जैसे स्वाभाविक है वैसे ही साहित्य जगत में, लेखन पद्धति में बदलाव आना स्वाभाविक है अक्सर एक जिज्ञासु रचनाकार ऐसी प्रभावी लेखन कला को खोजता रहता है और नए-नए तरीकों से सोच विचार करके अपनी बातों को लिखता रहता है कभी सपाट बयान बाजी, कभी उच्चतम अलंकारों मुहावरों का उपयोग, कभी टिप्पणियां कभी व्यंग्यात्मक ढंग से, कभी मनोरंजनात्मक ढंग से अपनी लेखन विचारों को साझा करता है
प्रभावी लेखन की प्रभाव क्षमता को दो स्तरों पर पहचाना जा सकता है
1- विषयों के स्तर पर मतलब लेखक किस विषय को अपनी लेखनी प्रस्तुत करना चाहता है।
2- शिल्प के स्तर पर मतलब जिस वस्तु को लेखक ने अपने लेखन में चुना है इसकी प्रस्तुति के लिए किन शिल्प गतिविधियों का उपयोग किया है
1- प्रभावी लेखन में विषय के स्तर पर पहली आवश्यकता यह है कि लेखन के विषय को अच्छी तरह से सोच समझकर विचार करके उस पर लेख लिखा जाए समझा जाए । जिस मुद्दे पर लेखक जितना ज्यादा विचार करेगा और जितना ज्यादा उसके निकट रहेगा उतना ही लेखक के लेख में घनिष्ठता गहराई और गुणवत्ता और प्रभाविता दिखाई देगी। और यदि आप लिखने से पहले उस विषय के बारे में पढ़ते हैं विचार करते हैं समझते हैं तो आपको कहीं ना कहीं अपने लेख में उसका प्रभाव जरूर देखने को मिलेगा। मनन चिंतन की प्रक्रिया को आप सुचारू रूप से उस विषय से संबंधित चालू रखें।
2- लेखन कई बार अपने विषय के संबंध में स्पष्ट होता है लेकिन स्पष्टता के बाद भी वह अपने आप में प्रभावी नहीं होता इसका एक कारण यह है कि वह विषयों या मतों को ही लेखन का सब कुछ मान लेता है और यह नहीं समझ पाता कि ना सिर्फ बात महत्वपूर्ण है बात को कहने का ढंग भी उतना ही महत्वपूर्ण होता है अगर बात ठीक या प्रभावी ढंग से नहीं कही जाएगी तो बात बड़ी होकर भी बेकार चली जाएगी इसलिए लेखन में रचना कौशल अर्थात अपने विचार या भाव को अधिक प्रभावी बनाने की जरूरत होती है और यह रचना कौशल सीखना पड़ता है इसे अभ्यास व परिश्रम द्वारा साधा जा सकता है इस रचना कौशल के अंतर्गत कई पक्ष आते है कुछ पक्ष जैसे भाषा पर अधिकार, शब्दावली, वाक्य विन्यास, शैली, मुहावरे लोकोक्तियां का समुचित उपयोग, अलंकार, व्याकरणिक शुद्धता, अर्थ और भाषा में अनियमितता ।
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