सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का साहित्यक चिंतन का दायरा कितना व्यापक है
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला हिंदी काव्य के आधुनिक काल के छायावाद युग के चार प्रमुख स्थानों में से एक माने जाते हैं जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत और महादेवी वर्मा में छायावाद के प्रमुख स्तंभ माने जाते हैं सन 1898 में बंगाल के मेदिनीपुर जिले के महिषादल गांव में जाने माने साहित्यकार सूर्यकांत त्रिपाठी निराला का जन्म हुआ निराला को सर्वाधिक प्रसिद्ध दी सन 1916 में मिली जब उन्होंने कविता जूही की काली रात को रचा तब से वह मुक्त छंद के प्रवर्तक भी माने जाते हैं सन 1922 में वह रामकृष्ण मिशन द्वारा प्रकाशित पत्रिका संबंध में के संपादन से जुड़ गए निराला जी 1923 -1924 में मतवाला के संपादक मंडल में शामिल हुए वह सारे जीवन आर्थिक परेशानी तो भोंकते रहे साथ ही पारिवारिक सुख से भी वंचित रहे स्थाई रूप से कहीं भी कार्य नहीं कर सके क्योंकि वह स्वाभिमानी व्यक्ति थे और अपने व्यक्तित्व से किसी भी प्रकार का समझौता नहीं कर सकते थे अंत में इलाहाबाद आ कर रहे और सन 1961 में उनका देहांत हुआ निराला का काव्य संसार बहुत व्यापक है उनमें भारतीय इतिहास दर्शन और परंपरा को समझने की अपार क्षमता है और समकालीन जीवन के यथार्थ के विभिन्न पक्षों का चित्रण भी निराला जैसी भावों और विचारों की विविधता व्यापकता और गहराई उनकी कविताओं में मिलती है
निराला की प्रमुख काव्य कृतियां
परिमल,
गीतिका ,
अनामिका ,
तुलसीदास ,
कुकुरमुत्ता,
अणिमा ,
नए पत्ते, बेला,
अर्चना,आराधना ,
गीत कुंज आदि
निराला का साहित्यिक चिंतन का दायरा कितना विस्तृत था इसके ऊपर एक नजर डालेंगे
निराला अपनी साहित्य क्रम में इतनी निराले हैं कि एक अत्यंत निराली परंपरा का ही निर्माण कर डाला वह समाज,मानव,राजनीति,साहित्य आदि को बंधन मुक्त करने हेतु आजीवन संघर्ष करते रहे समस्त प्रकार के आयोजन में बंधन को तोड़ने का प्रयास 1932 की रचना तोड़ती पत्थर से हुआ था इससे पूर्व लोक प्रसिद्ध नायक-नायिका, राजा महाराजाओं के पुरुषों अथवा श्रेष्ठ पात्रों पर ही का साहित्य सर्जन किया जाता था लेकिन निराला निराला ने विषय परिवर्तन व साहित्यिक परंपरा को, काव्यशास्त्र की परंपरा को तोड़ा और छायावाद के अधिक प्रयोगात्मक और विस्तृत कवि भी माने जाते है निराला का जीवन संघर्ष के दोहरे स्तर पर रहा - सामाजिक और व्यक्तिगत दोनों रूपों से 'दुख ही जीवन की कथा रही' पंक्ति निराला के संपूर्ण जीवन संघर्ष का निचोड़ है निराला के साहित्यिक चिंतन का दायरा अधिक विस्तृत है छायावादी काल के अंतर्गत जहां छायावादी भाव बोध से मुक्त कविताएं लिखी वही बादल राग जैसा यथार्थवादी काव्य भी लिखा प्रगतिवादी भले ही चिल्लाएगी वह प्रगतिशील विचारधारा के है परंतु निराला जैसी खरी प्रगतिशीलता उन में नहीं दिखाई देती है इनके साहित्य में स्वाभाविक व्यंग का तीखापन है निराला का साहित्य जीवित और जीवंत साहित्य है निराला के साहित्य में सामाजिक चेतना,सामाजिक रूढ़ीवादी मान्यताओं से लड़ने वाला, और सामाजिक ,साहित्य स्वतंत्रता की मुक्ति कामना का है
छायावाद की मूल प्रेरणा स्वतंत्रता या मुक्ति की कामना है इन मुक्ति कामना के भाव में कवियों की रचना में स्वतंत्रता व मुक्ति की प्रतिध्वनि सुनी जा सकती है निराला इसके सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधि हैं ये छंद के बंधनों से मुक्ति चाहते हैं, सड़ी गली मान्यताओं से मुक्ति चाहते हैं, प्रेम संबंधों पुरातन धारणाओं से मुक्ति चाहते हैं, पुरानी साहित्यिक परंपरा से मुक्ति चाहते हैं इसलिए निराला को विद्रोही व क्रांतिकारी स्वरूप भी दिया जाता है या कहा जाता है
निराला की सामाजिक चेतना :- निराला साहित्य सामाजिक चेतना से संपन्न है उनके साहित्य में सामाजिक विसंगतियों से हमेशा संघर्ष करते हुए दिखाई देते हैं सही मायने में निराला का साहित्य नवजागरण का प्रतीक है कबीर के बाद अगर किसी साहित्य में प्रतिरोध का स्वर दिखाई पड़ता है तो वह निराला के ही साहित्य में दिखाई पड़ता है निराला ने सामाजिक विषमताओं पर जमकर प्रहार किया सामाजिक शोषण का पर्दाफाश करते हुए समाज के यथार्थ स्थिति को सामने रखा समाज की रूढ़िवादी मानसिकता से वह पूरी तरह परिचित थे वह निर्धन, कृषक, शोषित, श्रमिक, दलित पीड़ित, अन्याय से कुचले हुए लोगों को अपने सर्जन का केंद्र बिंदु बनाकर विसंगतियों को तोड़ना चाहते थे
निराला ने अपनी पुत्री का विवाह भी बिना दहेज, बिना बारात, बिना किसी पुरानी साड़ी गई विचार व रूढ़िवादी मानसिकता, मान्यता के अपनाएं बिना ही करते हैं मानवीय मूल्यों का ध्यान रखते हुए उन्होंने समाज को कलंकित करने वाली हर परंपरा का जोरदार विरोध किया अपने युग की सामाजिक राजनीतिक सांस्कृतिक परिस्थितियों से वह पूरी तरह परिचित है आजादी का करुणा कंद उनकी रचना में स्पष्ट दिखाई देता है गरीबी भूख मुक्ति को भी उन्होंने अपनी रचनाओं के जरिए बेहतरीन तरीके से रखा है।
चि
निराला का प्राकृतिक चित्रण:- निराला ने अपनी रचनाओं में प्राकृतिक चित्रण को इंगित किया है निराला ने प्राकृतिक चित्रण का व्यापक और संवेदनशील तरीके से स्पष्ट किया है निराला ने अपनी रचना संध्या में प्राकृतिक चित्रण का चित्र वह स्वरूप रचाया है वह अधिक अनुभूति कराने वाला काव्य सौंदर्य की दृष्टि से साहित्य में समाहित हो जाने वाला दृश्य लगता है
निराला की मुक्ति भावना:- छायावाद की मूल प्रेरणा स्वतंत्रता या मुक्ति की कामना है इन मुक्ति का भी कवियों की रचनाओं में सर्वत्र इसकी प्रतिध्वनि सुनी जा सकती है निराला इसके सबसे सर्वश्रेष्ठ प्रतिनिधि हैं यह चंद के बंधनों से मुक्ति चाहते हैं सड़ी गली मान्यताओं से मुक्ति चाहते हैं प्रेम संबंधों पुरातन धारणाओं से मुक्ति चाहते हैं साहित्य रूढ़ियों से मुक्ति चाहते हैं इसलिए निराला को विद्रोही या क्रांतिकारी भी कहा गया है निराला की रचनाओं में चंदू के बंधनों से मुक्ति समाज की सड़ी गली रोड़ी मान्यताओं से मुक्ति का भाव स्पष्ट दिखाई पड़ता है इसलिए उन्हें सबसे श्रेष्ठ अभिव्यक्ति वह बदलाव का कवि माना जाता है मैं लिखते हैं "आज नहीं है मुझ में और कुछ चाह अर्ध विकच इस हृदय कमल में आत् प्रिये, छोड़कर बन्धनमय छंदों की छोटी राह..."
"दोनों हम भिन्न वर्ण
बिन जाति, भिन्न रूप......"
राष्ट्रीय चेतना/भावना :- निराला की राष्ट्रीय भावना निराला ने कंपनी काव्य रचना के माध्यम से जन-जन में एक समूह भावना जागृत करने का प्रयास किया तथा छायावाद के कवियों की ही भांति उन्होंने राष्ट्र के प्रति प्रेम व राष्ट्रीय एकता की भावना के संदर्भ में रचनाएं की 'वर दे वीणा वादिनी वर दे' जैसी अनेक रचनाओं में उनकी राष्ट्रीय चेतना राष्ट्रीय भावना को देखा जा सकता है जागो फिर एक बार बादल राग महाराजा शिवाजी का पत्र नीचे उस पर श्याम आदि को उसके प्रमाण में प्रस्तुत किया जा सकता है इन कविताओं के माध्यम से निराला ने जन जन में राष्ट्रीय भावना को बहुत कलात्मक ढंग से प्रस्तुत किया
नारी चित्रण :- निराला ने अपनी रचना में नारी को एक सशक्त नारी के रूप में प्रस्तुत किया है निराला ने एक महिला के मार्मिक चरित्र का वर्णन करते हुए कविता लिखी 'वह तोड़ती पत्थर देखा मैंने उसे इलाहाबाद के पथ पर' छायावाद युग और खास तौर पर निराला ने अपनी कविताओं में मेहनती व स्वाभिमानी महिला के रूप में स्त्री को दिखाया वह श्रमिक महिला जो सामाजिक विषमताओं को तोड़ने की शक्ति रखती है
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