सोशल मीडिया और लोकतंत्र - ( Democracy and social media)
सोशल मीडिया और लोकतंत्र
जनसंपर्क :- जनसंपर्क की अवधारणा मानव समाज जितनी ही पुरानी है इसे लोकसंपर्क के रूप में भी समझा जा सकता है अंग्रेजी में इसके लिए P.R. या (public relations) के रूप में उपयोग में लाया जाता है जनसंपर्क में जन को कई अर्थों में लिया जा सकता है सरकारें विभिन्न संस्थाएं अथवा जनसंचार के माध्यम जनसंपर्क के दौरान अपनी नीतियों व कार्यक्रमों के संदर्भ में जनता के किसी विशिष्ट हिस्से को केंद्रित करते हुए अपना अभियान चला पाते हैं इस तरह जनसंपर्क की दृष्टि में जन शब्द का अर्थ एक लक्ष्य समूह भी हो सकता है जनसंपर्क मुख्यता वह सचेतना और योजनाबद्ध प्रयास है जिसमें जनता के साथ द्विपक्षीय वार्तालाप द्वारा परस्पर संपर्क संबंध स्थापना उनकी विभिन्न क्रिया प्रतिक्रिया की जानकारी सहमति का निर्माण और निर्धारित लक्ष्य के लिए जनता की अभिव्यक्ति एवं रुझान को उस उद्देश्यय की तरफ परिवर्तित करने के लिए संगठित प्रयास किया जाता है जिससे सरकारों विभिन्न संस्थाओं को नीति निर्माण में सहायता मिले नियोक्ता के हितों की सेवाा हो सके उत्पादन और बिक्री के लक्ष्य पूरे हो सकें यह संप्रेषण का विज्ञान है मानसिक वृत्ति एवं प्रबंधकीय दर्शन भी है जिसके द्वारा संबंधोंं को बेहतर बनाते हुए परस्पर सहमति और सौहार्द बनाने का प्रयास किया जाता है लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में इस जनसंपर्क में जन की भूमिका अधिक प्रभावी व निर्णायक होती है सरकारी तंत्रों द्वारा समुचित नीति निर्माण उनके प्रभावी कार्यों उनकेे प्रभाव जनमानस को सही जानकारी देने से लेकर उनकी क्रिया प्रतिक्रिया आकांक्षा सुझाव को जानने समझने तथा उन्हें विश्वास में लेने उनका समर्थन प्राप्त करने आदि के लिए सरकारों द्वारा जन संपर्क करना आज अनिवार्य हो गया है जनसंचार के साधनों के उत्तरोत्तर विकास का जनसंपर्क की प्रक्रिया को व्यवस्थित और प्रभावी बनाने में महत्वपूर्ण योगदान रहा है हालांकि सोशल मीडिया को छोड़कर अब तक केे सार जनसंचार माध्यम एक तरफा संंचार के माध्यम ज्यादा रहे है सोशल मीडिया की दो तरफा संचार की ताकत और प्रक्रिया ने जनसंपर्क को प्रभावी और विश्वसनीय बनानेे में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है
जनसंपर्क का महत्व आज इतनी तेजी से बढ़ रहा है की सरकारों के महत्वपूर्ण विभागों में से एक जनसंपर्क विभाग है साथ ही विभिन्न सरकारी और निजी निकायों कार्यालयों और विभागों में जनसंपर्क अधिकारी तैनात किए गए हैं अपनी बढ़ती मांग और योग्यता की वजह से यह एक संपूर्ण अनुशासन के रूप में स्थापित हो गया है सोशल मीडिया के आने के बाद अब दो तरफा संचार की वजह से बड़ी संख्या तक और ज्यादा प्रभावी जनसंपर्क की संभावना बनी है सोशल मीडिया के माध्यम से सरकारी संस्थाएं, सरकार की विभिन्न गतिविधियों, नीतियों, योजनाओं, वस्तुओं, सेवाओं और विभिन्न मुद्दों पर अपना पक्ष प्रयोक्ताओ के सामने रखती है।
जनमत:- जनमत शब्द जन और मत से बना है जिसका अर्थ हुआ जनताा की राय या दृष्टिकोण । जनमत निर्माण भी किसी उद्देश्य से किया जाता है। तत्पश्चात इसका उद्देश्य अपने पक्ष में जनता का मत तैयार करना, विरोधी पक्ष के विरुद्ध मत तैयार करना, पुराने मत के विरुद्ध नया मत तैयार करना, आंदोलन खड़ा करना, जनता के बीच अपने समर्थकों की फौज खड़ी करना इत्यादि। सरकारी बड़े निर्णय को लेने से पूर्व यह प्रयास करती हैं कि उनके पक्ष में जनमत निर्माण का प्रयास हो। इसके लिए जन माध्यमों के द्वारा लोगों के बीच में बहस विमर्श अपने समर्थकों द्वारा लोगों के पक्ष में करने का प्रयास करना लोगों की प्रतिक्रिया आमंत्रित करना, लोगों को जागरूक करना आदि।
जनसंपर्क जनमत निर्माण का सबसे प्रमुख और प्रभावी साधन है जनमत के निर्माण में समाज के प्रभावी व्यक्तियों, राजनीतिक दलों, सार्वजनिक सभाएं, शिक्षा, चुनाव, अफवाह, आंदोलन आदि के अतिरिक्त प्रमुख जनसंचार माध्यमों की गहरी भूमिका होती है। पोस्टर, बैनर, समाचार पत्र, पत्रिकाएं, पुस्तकें, रेडियो, टीवी, सिनेमा इत्यादि के द्वारा विभिन्न मतों, समस्याओं और मुद्दों पर जनता के सामने अपना पक्ष विचार रखे जाते हैं जिनसे जनमत निर्माण में मदद मिलती है। सोशल मीडिया मौजूदा दौर का जनमत निर्माण का सबसे प्रभावी साधन है कुछ पलों में महत्वपूर्ण सूचनाएं अनगिनत लोगों तक पहुंच जाती है और उन पर टिप्पणियां और वाद-विवाद का सिलसिला शुरू हो जाता है लोकतंत्र का भविष्य जनमत के सम्मान पर आधारित होता है।
जनभागीदारी, जनजागरूकता व सोशल मीडिया:-
लोकतांत्रिक व्यवस्था में नीति निर्धार को और निर्णय लेने वालों के चयन के प्रत्येक स्तर पर जनता को अपना मत देने व चुनाव करने का अधिकार होता है भारत जैसे देश में जो मानव आबादी भौगोलिक विस्तार और विभिन्न भाषाएं, सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक पहचानो के साथ विभिन्न अस्मिताओं का एक बड़ा मेल है, इसमें जनभागीदारी को और अधिक व्यापक होना चाहिए जिससे सभी पक्षों को नीतियों के निर्माण, कार्यान्वयन और बड़े निर्णयों में अपना पक्ष प्रस्तुत करने का मौका रहे।जनभागीदारी और जन जागरूकता का आपस में गहरा संबंध है और यह दोनों एक दूसरे के पूरक भी हैं जन जागरूकता से ही जन भागीदारी सुनिश्चित की जा सकती है और इसमें जनसंपर्क और जनसंचार माध्यमों की बहुत बड़ी भूमिका हो सकती है। इससे शासन व्यवस्था के प्रति लोगों का लगाओ बढ़ जाता है, जिससे जन सहयोग भी बढ़ता है जन जागरूकता से नागरिकों में सेहत, शिक्षा, पर्यावरण, पारिवारिक, सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक आदि मामलों में जानकारी बढ़ती है जो आगे चलकर सकारात्मक प्रेरणा के रूप में काम करती है।
आज के दौर में क्योंकि सोशल मीडिया सूचना और विचारों के आदान-प्रदान का सशक्त माध्यम बन गया है और वर्तमान परिदृश्य में इसका प्रभाव बहुत व्यापक हो चुका है इसलिए सोशल मीडिया की जिम्मेदारी बढ़ जाती है सोशल मीडिया से हमें महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने, लिंग भेद समाप्त करने, बाल श्रम के उन्मूलन जैसे अनेक मुद्दों पर भी मदद मिल सकती है। सोशल मीडिया लोकतांत्रिक समाज को मजबूती देने में सहयोगी एवं महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
जन-आंदोलन और सोशल मीडिया:- सोशल मीडिया ने बेहद कम समय में भारतीय समाज में मजबूती से अपनी पहचान कायम की है।अपनी प्रकृति और स्वभाव में बेहद लोकतांत्रिक सोशल मीडिया ने भौगोलिक, सामाजिक, धार्मिक, जाति और लिंग की सभी सीमाएं तोड़कर नासिर पारंपरिक मीडिया को चुनौती दी है साथ ही सही मायने में आम आदमी का माध्यम बन गया है।समाज के लोकतांत्रिक स्वरूप को बनाए रखने तथा लोकतांत्रिक व्यवस्था को सुचारू ढंग से चलाने में जन आंदोलन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। साथ ही यह भी आवश्यक है कि जन आंदोलन की दशा, दिशा, लक्ष्य और नेतृत्व सटीक हो। भारत में तो जन आंदोलन की लंबी कतार रही है किसी भी आंदोलन के बनने में और उसे मजबूत बनाने में जनभागीदारी की भूमिका अहम होती है उपरोक्त सभी आंदोलन इसलिए बने और चले की जनता ने बड़े पैमाने पर उनमें बढ़ चढ़कर भाग लिया और मजबूत बनाया।
उदाहरण के तौर पर:-
* दिल्ली में हुआ अन्ना आंदोलन का नाम आता है जिन्होंने जनलोकपाल के लिए दिल्ली में बैठकर पूरे देश को आंदोलित कर दिया इस आंदोलन के बाद आम आदमी पार्टी का जन्म हुआ जिसमें दो 2 वर्ष के भीतर दिल्ली के विधानसभा चुनाव में रिकॉर्ड जीत दर्ज कराते हुए 70 में से 67 सीट हासिल कर इतिहास रचा।
* निर्भया केस 2012 दिल्ली सामूहिक बलात्कार 2 दिसंबर के महीने में हुई घटना थी। जिस ने देखते ही देखते पूरे देश के लोगों के मन में आक्रोश का रूप ले लिया और "निर्भया के दोषियों को फांसी दो", "महिला सुरक्षा" कि मांग उठने लगी और जगह-जगह कैंडल मार्च निकाले गए, सड़कों पर लोग उतर गए, जंतर मंतर सहित देश के विभिन्न हिस्सों में प्रदर्शन चालू हो गए, संसद का घेराव किया गया, इंडिया गेट पर काफी प्रदर्शन हुआ और इस घटना का असर 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव पर भी पड़ा और सत्ता बदल गई हालांकि लंबे समय बाद इंसाफ हुआ और 2020 फरवरी के महीने में दोषियों को फांसी दे दी गई।
NRC/CAA आंदोलन (नागरिकता संशोधन कानून)
* CAA आंदोलन (नागरिकता संशोधन कानून) अभी हाल फिलहाल में काफी चर्चा में रहा इस कानून में 3 पड़ोसी देशों बांग्लादेश पाकिस्तान और अफगानिस्तान से हिंदू सहित छह धर्मों के सभी लोगों को भारत की नागरिकता देने का प्रावधान किया गया जो 31 दिसंबर 2014 तक भारत आ गए थे उन्हें नागरिकता संशोधन कानून बन जाने के बाद भारतीय नागरिकता मिल जाएगी हालांकि इसको लोकतंत्र की धर्मनिरपेक्षता और आत्मा के विरुद्ध माना गया इस कानून के विरोध में व समर्थन में बड़ी संख्या में आंदोलन हुए जिसके चलते सरकार द्वारा बार-बार यह एहसास नागरिकों को दिलाया गया की इससे किसी भी भारतीय विशेष समुदाय व नागरिक पर कोई भी प्रभाव नहीं पड़ेगा।
निष्कर्ष:- आंदोलन को संभव बनाने में सोशल मीडिया की निर्णायक भूमिका रही है भारतीय लोकतंत्र के लिए शुभ संध्या एक सकारात्मक पहलू के रूप में सामने आया है इसने उन तमाम तरह के आंदोलनकारी लोगों को भी तोड़ दिया है जिनकी आवाज पहले कम सुनाई देती थी इसमें छोटे राज्यों के निर्माण के समर्थकों से लेकर कई जातियां उपजातियां वर्गीय धार्मिक समूह तक शामिल है चाहे दिल्ली रेप केस आंदोलन के खिलाफ जन आंदोलन की बात हो, अन्ना आंदोलन, आदि विभिन्न आंदोलन में सोशल मीडिया का जमकर के इस्तेमाल हुआ। सोशल मीडिया के प्रयोग का बड़ा असर प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर भी पड़ा है और इसमें एक बड़ा बदलाव आया है यह बदलाव है सिटीजन जर्नलिस्ट यानी इंटरनेट और मोबाइल के कैमरे के जरिए किसी भी घटना से संबंधित कुछ क्लिप बनाकर किसी घटना की जानकारी देने वाले आम लोग पत्रकार की भूमिका निभा रहे हैं सही मायनों में जन आंदोलन की आवश्यकता बढ़ने लगी है इस माहौल में आने वाले समय में सोशल मीडिया क्या भूमिका निभाएगा यह तो वक्त ही बताएगा।सोशल मीडिया के बारे में आज कई महत्वपूर्ण और बुनियादी प्रश्न उठाते हैं कि सोशल मीडिया का इस्तेमाल अफवाह फैलाने पक्षपात पूर्ण विचारों को सच बताने विमर्श की जगह छोटी टिप्पणियों के द्वारा पल भर में निष्कर्ष तक पहुंच जाने आदि विभिन्न समस्या सरकार और सत्ता द्वारा अपने हितों में नियंत्रण जैसी अनगिनत समस्याएं इंटरनेट और सोशल मीडिया के उपयोग में बाधा पैदा करती हैं व निरंतर कर भी रही है हालांकि सतर्क होकर सोशल मीडिया लोकतांत्रिक समाज को मजबूती देने में सहयोगी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है
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